विदेशी निवेश को बढ़ावा देने के लिए सरकार लॉन्च करने जा रही है ग्लोबल ETF

सरकार का इस योजना के पीछे लक्ष्य ऐसे निवेशकों को आकर्षित करना है जिन्होंने अभी तक निवेश निवेश आकर्षित करने के लिए 8 विकल्प निवेश आकर्षित करने के लिए 8 विकल्प नहीं किया है. ये विदेश के बड़े पेंशन कोष हैं.

विदेशों के बड़े पेंशन फंड घरानों को भारत में लंबी अविधि में निवेश के लिए आकर्षित करने के लिए वित्त मंत्रालय ईटीएफ को वैश्विक स्तर पर लॉन्च करने की योजना बना रहा है. वित्त मंत्रालय वैश्विक एक्सचेंज ट्रेडेड फंड (ईटीएफ) शुरू करने की योजना बना रहा है.

नया ईटीएफ अगले वित्त वर्ष में शुरू किया जाएगा. इस तरह के कोष के प्रति बड़े निवेशकों की रुचि का अध्ययन करने के बाद नया ईटीएफ लाया जाएगा. मंत्रालय पहले ‘भारत-22’ ईटीएफ को विदेशी बाजार में सूचीबद्ध करने का विचार कर रहा था पर यह विचार छोड़ दिया गया.

निवेशकों ने इसमें निवेश से जुड़ी लागत को लेकर आशंका जतायी थी. इन लागतों में हेजिंग (बाजार में उतार चढ़ाव से बचने के लिए वायादा-विकल्प के सौंदे करने) तथा और धन को एक मुद्रा से दूसरी मुद्रा में बदलने जैसी लागतें शामिल हैं.

सरकार का इस योजना के पीछे लक्ष्य ऐसे निवेशकों को आकर्षित करना है जिन्होंने अभी तक निवेश नहीं किया है. ये विदेश के बड़े पेंशन कोष हैं. एक नए ईटीएफ पर विचार किया जा रहा है. इसका गठन निवेशकों की रुचि वाले क्षेत्रों के आधार पर किया जाएगा.

केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रम (सीपीएसई) जिनमें सरकारी की हिस्सेदारी के विनिवेश की उल्लेखनीय गुंजाइश है, को वैश्विक सूचीबद्धता के लिए प्रस्तावित ईटीएफ में शामिल किया जाएगा. ये ऐसे सीपीएसई होंगे जिनमें प्रवर्तक की हिस्सेदारी 58 से 60 प्रतिशत से अधिक होगी. सरकार के दो एक्सचेंज ट्रेडेड फंड्स सीपीएसई ईटीएफ और भारत-22 ईटीएफ घरेलू शेयर बाजारों में सूचीबद्ध हैं.

भारत-22 ईटीएफ 2017-18 में शुरू किया गया था. इसका यूनिटों से जुटा धन 16 केंद्रीय उपक्रमों , तीन सरकारी बैंकों और निजी क्षेत्र की तीन कंपनियों आईटीसी, एलएंडटी और एक्सिस बैंक के शेयरों में लगाया गया है जिनमें यूनिट ट्रस्ट आफ इंडिया की विशिष्ट इकाई (एसयूयूटीआई) की हिस्सेदारी है. सीपीएसई ईटीएफ 2014 में 10 प्रतिष्ठित केंद्रीय उपक्रमों के शेयरों के निवेश के आधार पर शुरू किया गया था. अब तक सरकर भारत-22 की दो किस्तों से 22,900 करोड़ रुपये और सीपीएसई ईटीएफ की तीन किस्तों से 11,500 करोड़ रुपये जुटा चुकी है.

‘मेक इन इंडिया’ के 8 वर्ष पूरे: प्रमुख उपलब्धियां

भारत सरकार का फ्लैगशिप कार्यक्रम मेक इन इंडिया (Make in India), जो निवेश को सुगम बनाता है, इनोवेशन को बढ़ावा देता है, कौशल विकास में वृद्धि करता है तथा विनिर्माण अवसंरचना वर्ग में सर्वश्रेष्ठ का निर्माण करता है, 25 सितंबर, 2022 को आठ वर्ष पूरे कर लिया

मेक इन इंडिया 2014 में लॉन्च किया गया था। मेक इन इंडिया ने 27 सेक्टरों में पर्याप्त उपलब्धियां हासिल की हैं। इनमें विनिर्माण तथा सेवाओं जैसे रणनीतिक सेक्टर भी शामिल हैं।

मेक इन इंडिया: प्रमुख उपलब्धियां

विदेशी निवेश आकर्षित करने के लिए, भारत सरकार ने एक उदार और पारदर्शी नीति बनाई है जिसमें अधिकांश सेक्टर ऑटोमैटिक रूट के तहत FDI के लिए खुले हैं। भारत में FDI इनफ्लो वित्त वर्ष 2014-15 में 45.15 बिलियन डॉलर था और तबसे लगातार आठ वर्षों तक निरंतर वृद्धि हुई है जो रिकॉर्ड FDI इनफ्लो तक पहुंच गई है।

वित्त वर्ष 2021-22 के दौरान 83.6 बिलियन डॉलर की सर्वाधिक FDI दर्ज किया गया। यह FDI 101 देशों से आया है और भारत में 31 राज्यों तथा केंद्र शासित प्रदेशों तथा 57 सेक्टर में निवेश किया गया है। हाल के वर्षों में आर्थिक सुधारों तथा ईज ऑफ डूइंग बिजनेस की बदौलत, देश चालू वित्त वर्ष के दौरान 100 बिलियन डॉलर FDI आकर्षित करने की राह पर है।

14 प्रमुख विनिर्माण क्षेत्रों में उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन स्कीम (PLI) मेक इन इंडिया पहल के लिए एक बड़े प्रोत्साहन के रूप में वित्त वर्ष 2020-21 में लांच की गई। पीएलआई स्कीम से उत्पादन एवं रोजगार के लिए उल्लेखनीय लाभ पैदा होने की उम्मीद है जिनमें एमएसएमई परितंत्र तक लाभ पहुंच सकता है।

विश्व अर्थव्यवस्था में सेमीकंडक्टरों के महत्व को स्वीकार करते हुए, भारत सरकार ने देश में सेमीकंडक्टर, डिस्प्ले, डिजाइन इकोसिस्टम का निर्माण करने के लिए 10 बिलियन डॉलर की एक प्रोत्साहन स्कीम लांच की है।

मेक इन इंडिया पहल को सुदृढ़ बनाने के लिए, भारत सरकार द्वारा कई अन्य उपाय किए गए हैं। सुधार के इन उपायों में कानून में संशोधन, अनावश्यक अनुपालन बोझ कम करने के लिए दिशानिर्देशों एवं विनियमनों का उदारीकरण, लागत में कमी लाना तथा भारत में व्यवसाय करने की सुगमता बढ़ाना शमिल है।

नियमों एवं विनियमनों के बोझिल अनुपालनों को सरलीकरण, विवेकीकरण, गैरअपराधीकरण एवं डिजिटाइजेशन के जरिये कम कर दिया गया है और भारत में व्यवसाय करना और अधिक आसान बना दिया गया है।

इसके अतिरिक्त, श्रम सुधारों से भर्ती और छंटनी में लचीलापन लाया गया है। स्थानीय विनिर्माण में गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए गुणवत्ता नियंत्रण आदेश लागू किए गए हैं। विनिर्माण और विनिवेश को बढ़ावा देने के लिए उठाये गए कदमों में कंपनी करों में कमी, सार्वजनिक खरीद ऑर्डर तथा चरणबद्ध विनिर्माण कार्यक्रम शामिल है।

स्थानीय उद्योग को वस्तुओं, कार्यों तथा सेवाओं की सार्वजनिक खरीद में वरीयता प्रदान करने के जरिये स्थानीय उद्योग को बढ़ावा देने के लिए एक सक्षमकारी प्रावधान के रूप में सामान्य वित्तीय नियम, 2017 के नियम 153 (iii) के अनुरुप सार्वजनिक खरीद (मेक इन इंडिया को वरीयता) ऑर्डर, 2017 भी जारी किया गया। इस नीति का लक्ष्य केवल व्यापार या असेंबल मदों का आयात करने वाले निकायों की तुलना में सार्वजनिक खरीद गतिविधियां में घरेलू विनिर्माता की भागीदारी को प्रोत्साहित करना है।

इसके अतिरिक्त, अनुमोदनों एवं मंजूरियों के लिए निवेशकों को एक एकल डिजिटल प्लेटफॉर्म उपलब्ध कराने के जरिये ईज ऑफ डूइंग बिजनेस में सुधार लाने के लिए सितंबर 2021 में राष्ट्रीय सिंगल विंडो सिस्टम (NSWS) भी सॉफ्ट-लांच किया गया है।

सरकार ने देश में विनिर्माण जोनों को मल्टीमॉडल कनेक्टिविटी उपलब्ध कराने के लिए एक प्रोग्राम भी लांच किया है जिसे प्रधानमंत्री गतिशक्ति कार्यक्रम कहा जाता है जो ऐसी अवसंरचना, जो व्यवसाय प्रचालनों में लजिस्टिक संबंधी दक्षता सुनिश्चित करेगा, के सृजन के जरिये कनेक्टिविटी में सुधार लाएगा।

एक जिला एक उत्पाद (ODOP) पहल देश के प्रत्येक जिले से स्वदेशी उत्पादों के संवर्धन और उत्पादन को सुगम बनाने तथा कारीगरों और हस्तशिल्प, हथकरघा, कपड़ा, कृषि तथा प्रसंस्कृति उत्पादों के विनिर्माताओं को एक वैश्विक मंच उपलब्ध कराने और इसके जरिये देश के विभिन्न क्षेत्रों के सामाजिक-आर्थिक विकास में और योगदान देने के जरिये ‘मेक इन इंडिया’ विजन की एक निवेश आकर्षित करने के लिए 8 विकल्प और अभिव्यक्ति है।

प्रधानमंत्री ने अगस्त 2020 में अपने मन की बात के प्रसारण के दौरान भारत को एक वैश्विक खिलौना निर्माण केंद्र के रूप में स्थापित करने और घरेलू डिजाइनिंग तथा विनिर्माण क्षमताओं को सुदृढ़ बनाने की इच्छा व्यक्त की।

भारत में खिलौना उद्योग ऐतिहासिक रूप से आयात पर निर्भर रहा है। कच्चे माल, प्रोद्योगिकी, डिजाइन क्षमता आदि की कमी के कारण खिलौनों और उसके कंपोनंट का भारी मात्रा में आयात हुआ। वित्त वर्ष 2018-19 के दौरान, हमारे देश में 371 मिलियन डॉलर (2960 करोड़ रुपये) के बराबर के खिलौनों का आयात हुआ। इन खिलौनों का एक बड़ा हिस्सा असुरक्षित, घटिया, नकली और सस्ते थे।

निम्न गुणवत्ता तथा नुकसानदायक खिलौनों के आयात पर ध्यान देने के लिए तथा खिलौनों के घरेलू विनिर्माण को बढ़ाने के लिए सरकार द्वारा कई रणनीतिक कदम उठाये गए हैं। कुछ प्रमुख पहलों में मूलभूत सीमा शुल्क को 20 प्रतिशत से बढ़ाकर 60 प्रतिशत करना, गुणवत्ता नियंत्रण आदेश का कार्यान्वयन, आयातित खिलौनों की अनिवार्य सैंपल जांच, घरेलू खिलौना विनिर्माताओं को 850 से अधिक BIS लाइसेंस की मंजूरी देना, खिलौना क्लस्टरों का निर्माण आदि शामिल हैं।

प्रचार संबंधी कई प्रमुख पहलों के रूप में वैश्विक आवश्यकताओं के अनुरुप नवोन्मेषण तथा नए समय की डिजाइन को प्रोत्साहित करने के लिए स्वदशी खिलौनों को बढ़ावा देने के लिए भारतीय खिलौना मेला 2021, टवॉयकैथोन 2021, ट्वॉय बिजनेस लीग 2022 का आयोजन किया गया।

घरेलू खिलौना विनिर्माताओं के प्रयासों की सहायता से कोविड-19 महामारी के बावजूद दो वर्षों से कम समय में भारतीय खिलौना उद्योग की वृद्धि उल्लेखनीय रही है। खिलौनों के आयात में बदौलत वित्त वर्ष 2021-22 के दौरान 70 प्रतिशत से अधिक की गिरावट आई है।

अर्थात्ः अगली जंग के नायक

महामारी के बाद निवेश का पहिया, राजस्व की चरखी और रोजगारों की मशीन चलाने के लिए केंद्र की नई रणनीति में राज्य केंद्रीय होंगे. आर्थिक सुधारों का जो नया दौर अब शुरू होगा (कोई विकल्प नहीं है) उसका नेतृत्व हर हाल में राज्य ही करेंगे.

अर्थात‍्

अंशुमान तिवारी

  • नई दिल्ली,
  • 04 मई 2020,
  • (अपडेटेड 04 मई 2020, 12:06 AM IST)

ताली-थाली और दीया-मोमबत्ती से होते हुए कोविड लॉकडाउन का तीसरा सप्ताह आने तक केंद्र सरकार थकने-सी लगी थी. यही मौका था जब भारतीय संविधानसभा की वह जद्दोजेहद कारगर नजर आने लगी, जिसके तहत राज्यों को पर्याप्त शक्तियों से लैस किया गया था. आजादी के बाद सबसे बडे़ संकट में भारत के राज्य अमेरिका की तरह वहां के राष्ट्रपति का सिरदर्द नहीं बने थे बल्कि संघीय ढांचे की ताकत के साथ महामारी से लड़ाई में केंद्र से आगे खडे़ थे.

नतीजतन, लॉकडाउन लगाते समय राज्यों की उपेक्षा करने वाला केंद्र, इसमें ढील से पहले उनसे मशविरे पर मजबूर हुआ और अंतत: कोविड से जंग को पूरी तरह राज्यों और वहां भी सबसे निचली प्रशासनिक इकाइयों के हाथ सौंप दिया गया.

महामारी की इस अंधी सुरंग के बाद कोई सपनीला बसंत हमारा इंतजार नहीं कर रहा है, बल्कि आगे मंदी की खड़ी चढ़ाई है जो महामारी से ज्यादा दर्दनाक और लंबी होगी. उसे जीतने के लिए जीतने का मंत्र, कोविड से लड़ाई ने ही दिया है यानी कि मंदी से जंग की अगुआई राज्यों को सौंपनी होगी.

संयोग से हमारे पास कुछ ऐसे तजुर्बे हैं जो पिछले ढाई निवेश आकर्षित करने के लिए 8 विकल्प दशकों के विकास में राज्यों की मौन लेकिन निर्णायक भूमिका की गवाही देते हैं.

•1997 से 2014 तक भारत में निजी निवेश का स्वर्ण काल था. वह राजनीति का सबसे अच्छा वक्त नहीं था. केंद्र में ढीली-ढाली सरकारें थीं, राज्यों से राजनैतिक समन्वय ध्वस्त था लेकिन निवेश के लिए राज्यों की होड़ ने रिकॉर्ड बना दिए. भारत की सभी भव्य उद्येाग निवेश कथाएं उसी दौर में लिखी गईं. राज्यों की विकास दर दशकीय आधार पर डेढ़ से दोगुना बढ़ गई, जिसका असर देश के जीडीपी की चमक में नजर आया.

•तब की कमजोर केंद्र सरकारों के तहत ताकतवर राज्यों ने सुधारों का अपनी तरह से इस्तेमाल किया और उद्यमिता को ताकत दी. 2019-20 आर्थिक समीक्षा के अनुसार, 2006 से नोटबंदी के पहले तक देश में नई इकाइयों की संख्या (पंजीकरण) 45,000 से 1.25 लाख पहुंच गई. इनमें सेवा क्षेत्र में सबसे ज्यादा नई इकाइयां (करीब छह गुना बढ़त) आईं जो स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं की मांग पर केंद्रित थी.

•सशक्त राज्यों के चलते वित्त आयोगों ने केंद्र और राज्यों के वित्तीय रिश्तों का नक्शा बदला. विकास के साथ राज्यों का अपना राजस्व भी बढ़ा. केंद्रीय बजट बढ़े. नतीजतन 2011 से 2019 के बीच (इक्रा) राज्यों का विकास खर्च 1.7 लाख करोड़ रुपए बढ़कर छह लाख करोड़ रुपए हो गया. करीब 83 फीसद पूंजी खर्च की कमान अब 15 राज्यों के पास है.

महामारी के बाद निवेश का पहिया, राजस्व की चरखी और रोजगारों की मशीन चलाने के लिए केंद्र की नई रणनीति में राज्य केंद्रीय होंगे. आर्थिक सुधारों का जो नया दौर अब शुरू होगा (कोई विकल्प नहीं है) उसका नेतृत्व हर हाल में राज्य ही करेंगे.

►राज्यों को जीएसटी के अंतर्गत निवेश आकर्षित करने के लिए कर छूट देने की छूट मिलनी चाहिए ताकि राज्यों के बीच प्रतिस्पर्धा शुरू हो सके. यही वह प्रतिस्पर्धा है जिसकी रोशनी में मुख्यमंत्रियों का चेहरा देखकर निवेशक आए. तब उद्योग मेले कम थे लेकिन निवेश ज्यादा था क्योंकि राज्य टैक्स, जमीन, सेवा दरों में तरह-तरह की सहूलत दे सकते थे. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बेहतर इसे कौन जानता होगा. हालांकि उनके केंद्र में आने के बाद राज्यों की ऐसी आजादियां लगभग छिन गईं

►कोविड के कहर के बाद वित्त आयोग को केंद्र-राज्य वित्तीय रिश्तों का नया प्रारूप बनाना होगा. उसे ध्यान रखना होगा कि राज्य 8-9 फीसद ब्याज पर कर्ज उठा रहे हैं यानी रेपो रेट का दोगुना और होम-कार लोन से महंगा. राज्यों को केंद्रीय स्कीमों के मकड़जाल ने मुक्त करने, सीधे आवंटन करने और घाटे नियंत्रित करने की नई सीमाओं में बांधना होगा. राज्यों का बॉन्ड बाजार शुरू करना होगा ताकि वह पारदर्शी हो सके और अपनी साख बेहतर कर सस्ता कर्ज ले सकें

►पिछले 25 वर्षों में राज्यों में उपक्रमों और सेवाओं का निजीकरण नहीं हुआ, नियामक नहीं बने, संस्थागत सुधार नहीं हुए. केंद्र को यह क्षमताएं विकसित करने में उनकी मदद करनी होगी. उनके ट्रेजरी संचालन चुस्त और बजटों का मानकीकरण करना होगा

अचरज नहीं कि अगर भीमराव आंबेडकर न होते तो विभाजन से डरी संविधानसभा (नेहरू भी) एक बेहद ताकतवर केंद्र वाला संविधान हमें सौंप देती और तब शायद हम इस महामारी से ऐसी लड़ाई नहीं लड़ पा रहे होते. आंबेडकर ने संविधानसभा को संघीय ढांचे और राज्यों को ताकत व अधिकार देने पर राजी किया और संविधान के जन्म के तत्काल बाद अपनी देखरेख में 1951 में वित्त आयोग का गठन भी कराया जो हर पांच साल पर राज्य निवेश आकर्षित करने के लिए 8 विकल्प व केंद्र के आर्थिक रिश्तों का स्वरूप तय करता है.

संविधान ने जिस समृद्ध संघीय ढांचे की राह दिखाई थी उस पर चलने का वक्त आ गया है. केंद्र को अपनी शक्तियां सीमित करनी होंगी. नई आर्थिक स्वतंत्रता के साथ राज्य ही हमें इस गहरी मंदी निकाल पाएंगे.

संविधान ने संघीय ढांचे की ताकत के साथ हर मुसीबत और मुश्किल से लड़ने का रास्ता पहले ही बता रखा है

जानिए फिक्स्ड डिपॉजिट के फायदे और नुकसान

बैंक में फिक्स्ड डिपॉजिट करना आम निवेशकों के बीच एक पसंदीदा निवेश विकल्प है.

सेबी के एक सर्वे के जरिए यह बात सामने आई है कि देश के 95 फीसदी लोग आज भी अपना पैसा निवेश करने के लिए बैंक जमाओं (फिक्स्ड डिपॉजिट) को शौप देते हैं, जबकि 10 फीसद से भी कम लोग अपना पैसा निवेश आकर्षित करने के लिए 8 विकल्प म्युचुअल फंड और स्टॉक में निवेश करना पसंद करते हैं. देश के शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में किया गया यह सर्वे बताता है कि भारतीयों के लिए जीवन बीमा दूसरा सबसे पसंदीदा निवेश विकल्प है. इसके अलावा भारतीयों के शीर्ष पांच निवेश विकल्पों में कीमती धातु (सोना-चांदी), पोस्ट ऑफिस सेविंग स्कीम और रियल एस्टेट आता है.

हम आपको आज फिक्स्ड डिपॉजिट के फायदे और निवेश आकर्षित करने के लिए 8 विकल्प नुकसान के बारे में बताएंगे.

बैंक में फिक्स्ड डिपॉजिट करना आम निवेशकों के बीच एक पसंदीदा निवेश विकल्प है. इसका सीधा कारण एक तो बैंक एफडी के जरिए किए जाने वाले निवेश का जोखिम रहित होना है और दूसरा निश्चित अवधि के एक निश्चित और आकर्षक ब्याज दर पर रिटर्न मिलना है. लेकिन एक्सपर्ट मानते हैं कि इन खूबियों के बाद भी बैंक में फिक्स्ड डिपॉजिट करवाने के कुछ नुकसान भी हैं.

फिक्स्ड डिपॉजिट के फायदे

1. जब कोई व्यक्ति किसी बैंक या पोस्ट ऑफिस में फिक्स्ड डिपॉजिट करवाता है तो यह निवेश पूरी तरह से जोखिम रहित होता है.

2. यह निवेश किसी भी तरह से लिंक नहीं होता. फिक्स्ड डिपॉजिट की अवधि पूरी होने के बाद निवेशक को पूरी राशि ब्याज के साथ वापस मिल जाती है.

3. फिक्स्ड डिपॉजिट में ब्याज दर सीनियर सिटीजन के लिए कुछ अधिक होती है.

4. बैंक भी समय-समय पर इसकी समीक्षा करके बाजार के अनुरूप

फिक्स्ड डिपॉजिट की दर को तय करते हैं.

5. तमाम बैंकों की फिक्स्ड डिपॉजिट की दर में मामूली अंतर होता है.

6. कई बार बैंक ज्यादा से ज्यादा निवेश आकर्षित करने के उद्देश्य से ग्राहकों को फिक्स्ड डिपॉजिट पर ऊंची दर की पेशकश करते हैं.

फिक्स्ड डिपॉजिट के नुकसान

1. बैंक एफडी पर मिलने वाला ब्याज प्राय: महंगाई की दर के बराबर ही होता है और कई बार इस दर से कम भी रह जाता है.

2. 2012-2014 के दौरान भारत की औसत महंगाई दर 9.76 फीसदी रही है.

3. एक्सपर्ट निवेश विकल्प पर रिटर्न जोड़ते समय उपभोक्ता महंगाई की औसत दर 8 फीसदी के बराबर मानते हैं.

4. ऐसे में बैंक एफडी पर अगर निवेशक को 8–8.5 फीसदी के आसपास का ही ब्याज मिलता है तो निवेशक बमुश्किल महंगाई दर को पछाड़ पाता है. ऐसे में निवेशक को निवेश पर मिलने वाला रिटर्न शून्य हो जाता है.

5. बैंक एफडी पर मिलने वाला रिटर्न टैक्सेबल होता है. आमतौर पर लंबे समय के लिए किया जाने वाला निवेश करमुक्त होता है.

6. बैंक एफडी पर मिलने वाला ब्याज मौजूदा स्लैब में ही करयोग्य होता है. ऐसे में मिलने वाला शुद्ध रिटर्न और घट जाता है.

7. महंगाई की दर से कम रिटर्न और मिलने वाले रिटर्न पर भी टैक्स लगने की वजह से शुद्ध कमाई का घट जाना ये दो ऐसे कारण हैं जो बैंक एफडी जैसे जोखिम रहित निवेश को बेहतर नहीं बनाते.

8. विशेषज्ञों का मानना है कि यदि आपने कम उम्र में निवेश शुरू किया है तो लंबी अवधि के लिए इक्विटी म्युचुअल फंड में निवेश करना आपके लिए एक बेहतरीन विकल्प है.

9. अगर उम्र या किसी अन्य कारण आपके जोखिम लेने की क्षमता नहीं है तभी आपको एफडी जैसे विकल्पों को चुनना चाहिए.

निवेश करने जा रहे हैं तो जान लें क्या है बेहतर : FD या NSC दोनों के बारे में

यदि आपने निवेश करने का मन बना लिया हैं, और निवेश करने जा रहें तो आप FD और NCS दोनों के बारें में यह अवश्य जान लें, कि निवेश आकर्षित करने के लिए 8 विकल्प आपके लिए क्या बेहतर है ? वैसे तो टैक्स बचत के साथ सुरक्षित निवेश के लिए लोग फिक्स्ड डिपॉजिट और एनएससी दोनों को ही अच्छा मानते हैं, उनका मानना है, कि ये दोनों विकल्प निवेश आकर्षित करने के लिए 8 विकल्प ही उनके लिए बेहतर हैं, परन्तु आपके लिए इन दोनों में कौन सा अधिक बेहतर है ? यह जानने के लिए आपको FD और NSC दोनों के बारे में पूरी जानकारी होना आवश्यक है| आईये जानते है, इनके बारें में विस्तार से-

फिक्स्ड डिपॉजिट (FD)

आपके निवेश के लिए फिक्स्ड डिपॉजिट भी अच्छा विकल्प होता है। जब कोई व्यक्ति निवेश के लिए किसी बैंक या पोस्ट ऑफिस में फिक्स्ड डिपॉजिट करवाता है, तो यह उसके लिए पूरी तरह से जोखिम रहित हो जाता है। जब उस व्यक्ति की फिक्स्ड डिपॉजिट की अवधि पूरी हो जाती है, तो इसके बादनिवेश निवेश आकर्षित करने के लिए 8 विकल्प निवेश आकर्षित करने के लिए 8 विकल्प करने वाले व्यक्ति की पूरी राशि उसको ब्याज के साथ वापस मिल जायेगी |

फिक्स्ड डिपॉजिट में ब्याज दर सीनियर सिटीजन के लिए कुछ ज्यादा रहती है। इसके पश्चात् बैंक भी समय-समय पर इसकी समीक्षा करके बाजार के अनुरूप फिक्स्ड डिपॉजिट की दर को तय करते रहते हैं। अधिकतर बैंकों की फिक्स्ड डिपॉजिट की दर में छोटा – मोटा अंतर रहता है।

कई बार इसमें अधिक से अधिक निवेश आकर्षित करने के उद्देश्य से ग्राहकों को फिक्स्ड डिपॉजिट पर ऊंची दर की पेशकश कर देते हैं। बता दें कि बैंक एफडी पर निवेशक को 8 से 8.5 फीसद निवेश आकर्षित करने के लिए 8 विकल्प के लगभग ब्याज प्राप्त होता है। इसकी सामान्य एफडीकी न्यूनतम अवधि 5 साल तक रहती है।

वहीं डाकघर की सामान्य एफडी की राशि 5 साल में पूरी हो जाती है वो भी आयकर की धारा 80 सी के अंतर्गत कर कटौती योग्य रहती है। उपस्थित आयकर कानून की धारा 80C के माध्यम से आप टैक्स सेविंग एफडी में किए निवेश पर 1.5 लाख रुपए तक की छूट ले सकते हैं। इसके अतिरिक्त इसमें आपकी ग्रॉस टोटल इनकम में से आपकी तरफ से टैक्स सेविंग एफडी में ज़मा की गई राशि को कम करके टैक्सेबल इनकम निकाल ली जाती है।

एनएससी(NSC)

निवेश में आपके के लिए नेशनल सेविंग सर्टिफिकेट (एनएससी) भी काफी बेहतर विकल्प हो सकता है। इसमें निवेश करने वाला व्यक्ति आयकर अधिनियम की धारा 80सी के अंतर्गत आय से 100000 रुपए तक की छूट प्राप्त कर सकता है।

आप किसी भी पोस्ट ऑफिस में एनएससी में निवेश कर सकते हैं परन्तु वहां पर सेविंग अकाउंट खोलने की सुविधा दी जा रही हो | वहां से भी आप निवेश कर सकते हैं | एनएससी पर अर्जित ब्याज हर साल की आय में शामिल किया जाता है। ऐसा इसमें इसलिए होता है क्योंकि, प्रथम पांच वर्ष का ब्याज मैच्योरिटी पर उपलब्ध कराया जाता है, तभी उसे संबंधित वर्ष में रिइन्वेस्टमेंट मानकर उसकी भी छूट धारा 80 सी के तहत दे दी जाती है। एनएससी में सरकारी गारंटी भी होती है।

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